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वि॒भावा॑ दे॒वः सु॒रणः॒ परि॑ क्षि॒तीर॒ग्निर्ब॑भूव॒ शव॑सा सु॒मद्र॑थः। तस्य॑ व्र॒तानि॑ भूरिपो॒षिणो॑ व॒यमुप॑ भूषेम॒ दम॒ आ सु॑वृ॒क्तिभिः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vibhāvā devaḥ suraṇaḥ pari kṣitīr agnir babhūva śavasā sumadrathaḥ | tasya vratāni bhūripoṣiṇo vayam upa bhūṣema dama ā suvṛktibhiḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒भाऽवा॑। दे॒वः। सु॒ऽरणः। परि॑। क्षि॒तीः। अ॒ग्निः। ब॒भू॒व॒। शव॑सा। सु॒मत्ऽर॑थः। तस्य॑। व्र॒तानि॑। भू॒रि॒ऽपो॒षिणः॑। व॒यम्। उप॑। भू॒षे॒म॒। दमे॑। आ। सु॒वृ॒क्तिऽभिः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:3» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् ! जैसे आप (विभावा) विविध दीप्तिमान् (देवः) मनोहर (सुरणः) सुन्दर रण जिससे होता वा (सुमद्रथः) जिससे प्रशंसित ज्ञानों का रथ के समान रथ होता (अग्निः) ऐसा अग्नि (सुवृक्तिभिः) सुन्दर वार्ताओं से और (शवसा) बल से (क्षितीः) पृथिवियों को (परि, बभूव) सब ओर से व्याप्त होता अर्थात् उनका तिरस्कार करता (तस्य) उसके (व्रतानि) शीलों को (भूरिपोषिणः) बहुत प्रकार पोषण पुष्टि जिनके विद्यमान वे (वयम्) हम लोग (दमे) घर में (उपाभूषेम) अपने समीप अच्छे प्रकार भूषित करते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - जैसे विद्वान् जन मनुष्यों के बीच बहुत पुष्टि देने और ऐश्वर्य की प्राप्ति करानेवाले तथा परोपकार से अलङ्कृत हों, वे राज्य के ऐश्वर्य को प्राप्त हों ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् यथा त्वं विभावा देवः सुरणः सुमद्रथोऽग्निः सुवृक्तिभिः शवसा क्षितीः परिबभूव तस्य व्रतानि भूरिपोषिणो वयं दम उपा भूषेम ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विभावा) विविधदीप्तिमान् (देवः) कमनीयः (सुरणः) शोभनो रणः सङ्ग्रामो यस्मात्सः (परि) सर्वतः (क्षितीः) पृथिवीः (अग्निः) पावकः (बभूव) भवति (शवसा) बलेन (सुमद्रथः) सुमतां प्रशस्तज्ञानानां रथ इव रथो यस्मात्सः (तस्य) (व्रतानि) शीलानि (भूरिपोषिणः) भूरि बहुविधः पोषो पुष्टिर्विद्यते येषां ते (वयम्) (उप) समीपे (भूषेम) (दमे) गृहे (आ) (सुवृक्तिभिः) शोभनाश्च ते वृक्तयो वर्तनानि च ताभिः ॥९॥
भावार्थभाषाः - यथा विद्वांसो मनुष्याणां बहुपुष्टिप्रदा ऐश्वर्यप्रापकाः परोपकारेणालङ्कृता भवेयुस्ते राज्यैश्वर्यमाप्नुयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विद्वान लोक माणसांना पुष्ट करून ऐश्वर्यप्रापक बनतात व परोपकाराने अलंकृत होतात, तेव्हा ते राज्याचे ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ९ ॥